( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )
मेरी सूरत तो मुझको सुखा रही ।
कभु न देखा वह
जलवा दिखा रही || टेक ||
पाँच दर्गोके अंदर मकाना मेरा
पाँच परदोंके भीतर निशाना मेरा
जहाँपे कहने की
बातें अडी रही ।। १ ।।
बीन दीपकके झलकी नजर आरही ।
जैसे सूरज और तारे चमक छा रही ।
बाजा अनहदका
बाजे मिठा वही ॥ २ ॥
धार अमृतसी बरसे भ्रमरकी जगे ।
योगी जोगी जपे नाम धुनमें लगे ।
कहता तुकड्या
दुईका पता नही ॥ ३ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा